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December 22, 2024
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जानिए अदालत में चेक बाउंस केस लगाने की पूरी प्रक्रिया

चेक बाउंस का प्रकरण अत्यंत साधारण प्रकरण होता है। इस प्रकरण की किसी भी कोर्ट में अत्यधिक भरमार है। वर्तमान समय में अधिकांश भुगतान चेक के माध्यम से किए जा रहे हैं। किसी भी व्यापारिक एवं पारिवारिक क्रम में लोगों द्वारा एक दूसरों को चेक दिए जा रहे हैं। चेक के अनादर हो जाने के कारण चेक बाउंस जैसे मुकदमों की भरमार न्यायालय में हो रही है।

निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 की धारा 138 चेक बाउंस का केस निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 की धारा 138 के अंतर्गत संस्थित किया जाता है। जिस भी समय चेक प्राप्त करने वाला व्यक्ति खुद को भुगतान किए गए रुपए नकद या अपने बैंक खाते में प्राप्त करना चाहता है तो निर्धारित दिनांक को बैंक में चेक को भुनाने के लिए डालता है, परंतु कुछ कारणों से चेक बाउंस हो सकता है। जैसे बैंक से खाता बंद कर दिया जाना, अकाउंट में पैसा नहीं होना, या फिर चेक को खाते में लगने से रोक दिया जाना। जब भी चेक अनादर होता है तो ऐसे अनादर पर चेक को प्राप्त करने वाले व्यक्ति के पास चेक बाउंस का प्रकरण दर्ज कराने का अधिकार होता है।

चेक बाउंस एक आपराधिक प्रकरण चेक बाउंस का प्रकरण एक आपराधिक प्रकरण होता है, जिसका कार्यवाही एक आपराधिक न्यायालय मजिस्ट्रेट के न्यायालय द्वारा संपन्न की जाती है। लेनदेन के मामले सिविल होते हैं, परंतु चेक बाउंस के प्रकरण को आपराधिक प्रकरण में रखा गया है। लीगल नोटिस चेक बाउंस के प्रकरण की शुरुआत लीगल नोटिस के माध्यम से की जाती है। जब चेक बाउंस होता है तो इसके बाउंस होने के 30 दिनों के भीतर चेक देने वाले व्यक्ति को एक लीगल नोटिस जिसे अधिकृत अधिवक्ता द्वारा भेजा जाता है।

लीगल नोटिस में चेक बाउंस हो जाने के कारण और भुगतान नहीं हो पाने के कारण दिए जाते हैं तथा 15 दिवस के भीतर राशि चेक देने वाले व्यक्ति से वापस देने का निवेदन किया जाता है। कोई भी चेक बाउंस के प्रकरण में लीगल नोटिस भेजने की अवधि चेक बाउंस होने की दिनांक से 30 दिन के भीतर करना होती है। 30 दिन के बाद लीगल नोटिस भेजा जाता है तो न्यायालय में चेक बाउंस प्रकरण को संस्थित किए जाने का अधिकार चेक रखने वाला व्यक्ति खो देता है।

जो 15 दिवस का समय भुगतान किए जाने के लिए या चेक बाउंस के संबंध में मध्यस्थता करने के लिए चेक देने वाले व्यक्ति को दिया जाता है। उस समय के बीत जाने के बाद 30 दिवस के भीतर न्यायालय में चेक बाउंस का प्रकरण दर्ज कर दिए जाने का अधिकार चेक प्राप्त करने वाले पक्षकार को प्राप्त हो जाता है। किसी युक्तियुक्त कारण से न्यायालय इस 30 दिन की अवधि को बढ़ा भी सकता है, लेकिन कारण युक्तियुक्त होना चाहिए।

नोटिस कैसे दें

 लीगल नोटिस स्पीड पोस्ट या रजिस्टर एडी के माध्यम से भेजा जाता है तथा इससे जो रसीद प्राप्त होती है वह चेक बाउंस का प्रकरण लगाते समय दस्तावेज का काम करती है। चेक देने वाले व्यक्ति का पता सही होना चाहिए और उसे उसी पते पर लीगल नोटिस दिया जाना चाहिए।

मजिस्ट्रेट के न्यायालय का निर्धारण

 जिस थाना क्षेत्र के अंतर्गत वह बैंक होती है, जिस बैंक में चेक को भुनाने के लिए लगाया गया है और चेक बैंक में अनादर हो गया है, उस थाना क्षेत्र के मजिस्ट्रेट के न्यायालय में इस चेक बाउंस के प्रकरण को संस्थित किया जाता है।

कोर्ट फ़ीस

 चेक बाउंस के प्रकरण में कोर्ट फीस महत्वपूर्ण चरण होता है। चेक बाउंस के प्रकरण में फीस के तीन स्तर दिए गए हैं। इन तीन स्तरों पर कोर्ट फीस का भुगतान स्टाम्प के माध्यम से किया जाता है।

 ये तीन स्तर निम्न हैं।

 ₹100000 राशि तक के चेक के लिए चेक में अंकित राशि की 5% कोर्ट फीस देना होती है।

₹100000 से ₹500000 तक के चेक के लिए राशि की 4% कोर्ट फीस देना होती है।

₹500000 से अधिक राशि के चेक के लिए राशि की 3% कोर्ट फीस देना होती है।

दस्तावेज

 परिवाद पत्र

 परिवाद पत्र महत्वपूर्ण होता है। चेक बाउंस के प्रकरण में परिवाद पत्र मजिस्ट्रेट के न्यायालय के नाम से तैयार किया जाता है। इस परिवाद पत्र में भुगतान के संबंध में कुल लेनदेन का जो व्यवहार हुआ है, उस व्यवहार से संबंधित सभी बिंदुओं पर मजिस्ट्रेट को संज्ञान दिया जाता है तथा इस परिवाद पत्र में परिवादी का शपथ पत्र भी होता है जो शपथ आयुक्त द्वारा रजिस्टर होता है।

 चेक की मूल प्रति

 अनादर रसीद

 लीगल नोटिस की प्रति

 लीगल नोटिस भेजे जाते समय एक रसीद प्राप्त होती है, जिसे सर्विस स्लिप कहा जाता है, जिसमें लीगल नोटिस भेजे जाने का दिनांक अंकित होता है। वह स्लिप दस्तावेजों में लगानी होती है।

 गवाहों की सूची

 अगर प्रकरण में कोई गवाह है तो गवाहों की सूची भी डाली जाएगी।

 प्रकरण रजिस्टर होना

जब सारे दस्तावेज प्रस्तुत कर दिए जाते हैं तो केस न्यायालय द्वारा रजिस्टर कर दिया जाता है और एक केस नंबर न्यायालय द्वारा अलॉट कर दिया जाता है।

 सम्मन

 प्रकरण के पक्षकारों को न्यायालय द्वारा सम्मन किया जाता है तथा न्यायालय में उपस्थित होने हेतु आदेश किया जाता है।

पुनः सम्मन

यदि आरोपी न्यायालय में उपस्थित होकर प्रकरण में अपने लिखित अभिकथन नहीं कर रहा है तो ऐसी परिस्थिति में पुनः सम्मन न्यायालय द्वारा भेजा जाता है।

 वारंट

 विदित रहे कि यह प्रकरण एक आपराधिक प्रकरण होता है, जिसे मजिस्ट्रेट के न्यायालय द्वारा सुना जाता है। इस प्रकरण में आरोपी को बुलाने के लिए वारंट भी किए जाते हैं। यदि आरोपी सम्मन के द्वारा न्यायालय में उपस्थित नहीं हो रहा है तो न्यायालय अपने विवेक के अनुसार जमानत या गैर जमानती किसी भी भांति का वारंट आरोपी के नाम संबंधित थाना क्षेत्र को जारी कर सकता है।

 प्रति परीक्षण (Cross Examination)

 आरोपी जब न्यायालय में उपस्थित होता है तो वह निगोशिएबल एक्ट की धारा 145(2) का आवेदन देकर न्यायालय से क्रॉस प्रति परीक्षण (Cross Examination) करने का निवेदन करता है तथा न्यायालय द्वारा आरोपी पक्षकार का क्रॉस करने की अनुमति दी जाती है।

 उपधारणा करना

 इस प्रकरण में न्यायालय अवधारणा करता है कि चेक देने वाला व्यक्ति दोषी ही होगा अर्थात उसने चेक दिया ही है। चेक प्राप्त करने वाला व्यक्ति कहीं ना कहीं सही है। अब यहां पर आरोपी पक्षकार यह सिद्ध करेगा कि उसके द्वारा कोई चेक नहीं दिया गया है। यहां साबित करने का भार आरोपी पर होता है।

 समरी ट्रायल

 यह एक समरी ट्रायल होता है, जिसे न्यायालय द्वारा शीघ्र निपटाने का प्रयास किया जाता है। इसमें बचाव पक्ष को बचाव के लिए साक्ष्य का उतना अवसर नहीं होता है, जैसा कि अवसर सेशन ट्रायल में होता है।

समझौता योग्य

यह अपराध समझौता योग्य होता है। यदि दोनों पक्षकार आपस में समझौता कर न्यायालय से इस प्रकरण को खत्म करना चाहते हैं तो समझौता कर दिया जाता है तथा अपराध का शमन हो जाता है। 2018 में संशोधन किया गया है। यह संशोधन धारा 143 ए है जो नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की है। इस धारा के अंतर्गत परिवादी पक्षकार एक आवेदन के माध्यम से आरोपी से अपने संपूर्ण धनराशि जो चेक में अंकित की गई है उसका 20% हिस्सा न्यायालय द्वारा दिलवाए जाने के लिए निवेदन कर सकता है और न्यायालय अपने आदेश के माध्यम से आरोपी से ऐसी धनराशि परिवादी को दिलवा सकता है।

अंतिम बहस

यदि आरोपी प्रकरण में समझौता नहीं करता है और मुकदमे को आगे चलाना चाहता है। ऐसी परिस्थिति में न्यायालय द्वारा आरोप तय कर मामले को अंतिम बहस के लिए रख दिया जाता है तथा दोनों पक्षकारों द्वारा आपस में अंतिम बहस होती।

निर्णय

 अंत में मामला निर्णय पर आता है तथा कोर्ट इस प्रकरण में दोषसिद्धि होने पर आरोपी को 2 वर्ष तक का सश्रम कारावास दे सकती है।

जमानती अपराध

 यह एक जमानती अपराध है, जिसमें यदि आरोपी की दोषसिद्धि हो जाती है और उसे न्यायालय द्वारा कारावास कर दिया जाता है। ऐसी परिस्थिति में वह ऊपर के न्यायालय में अपील कर जमानत ले सकता है। इस अपराध में किसी भी स्तर पर समझौता किया जा सकता है।

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