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December 23, 2024
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भारतीय दंड संहिता का सामान्य परिचय एवं इतिहास

अपराध किसी भी समाज के लिए घातक होता है, राजा का यह कर्तव्य बताया गया है कि वे अपनी प्रजा के भीतर न्याय करें और अपराध करने वाले अपराधी को दंडित करें। किसी एक व्यक्ति के कर्तव्य किसी दूसरे व्यक्ति के प्रति दायित्व होते हैं, समाज के प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि उनका कोई भी कार्य या लोप किसी दूसरे व्यक्ति के अधिकारों का हनन नहीं करें जैसे कि भयमुक्त समाज में जीना एक व्यक्ति का अधिकार है तो उस दूसरे व्यक्ति का यह कर्तव्य बनता है वह दूसरा व्यक्ति पहले व्यक्ति को किसी भी प्रकार से व्यथित नहीं करें जिससे उसके भयमुक्त समाज में जीने के अधिकार का अतिक्रमण हो।

अपराध विधि और दंड विधि सभ्य समाज की देन है, असभ्य समाज में उसका कोई अस्तित्व नहीं था। व्यक्ति को अपने शरीर और संपत्ति की रक्षा स्वयं करना होती थी, अपराधियों के लिए जीवन के बदले जीवन, दांत के बदले दांत, हाथ के बदले हाथ का दंड प्रचलन था। सभ्य समाज के साथ में विधि शासन का निर्माण हुआ तथा विधि शासन में किसी भी व्यक्ति को दंड विधि के अनुसार दिया जाने लगा। भारतीय दंड संहिता 1860 के पारित होने के पूर्व भारत में तीन प्रेसिडेंसी नगरों बंबई, कलकत्ता और मद्रास में अंग्रेजी विधि प्रयोग थी जबकि मुफस्सिल न्यायालय में मुस्लिम विधि लागू होती थी।

यदि कोई अपराध करता है तो उस अपराध के लिए दंड की व्यवस्था होती है। इस प्रकार के दंड के लिए एक ऐसे विधान की आवश्यकता है जो अपराधों का भी उल्लेख करें तथा उन अपराधों के लिए दंड का भी उल्लेख करें। भारतीय दंड संहिता प्राचीन ग्रंथ है वर्तमान युग में भी इसकी वही महत्ता हैं। यह ग्रंथ अपराधों का भी उल्लेख कर रहा है और उन अपराधों के साथ में दंड का भी उल्लेख कर रहा है। किसी भी समाज को बनाए रखने के लिए इस प्रकार की दंड संहिता की नितांत आवश्यकता होती है। यदि किसी समाज के अंदर अपराधों का निर्धारण नहीं किया गया है तथा उन अपराधों के लिए दंड का निर्धारण नहीं किया गया है तो उस समाज में चारों तरफ हाहाकार मच जाएगा तथा विसंगतियों का जन्म हो जाएगा।

मनुष्य को विधि से बाधित करना सर्वाधिक आवश्यक होता है, किसी भी मनुष्य को संपूर्ण रूप से स्वतंत्र छोड़ा जाना सारे समाज के लिए खतरा है। विधि मनुष्य पर कुछ विधिक दायित्व आरोपित करती है। यदि कोई व्यक्ति इन दायित्व का निर्वाह नहीं करता है या इनका उल्लंघन करता है तो वह दंड का भागी होता है। हर व्यक्ति पर अन्य व्यक्ति के शरीर संपत्ति प्रतिष्ठा आदि की रक्षा एवं सम्मान करने का दायित्व रहता है। यदि कोई व्यक्ति अपने दायित्व की अवहेलना करते हुए किसी व्यक्ति के शरीर संपत्ति या प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाता है तो वह अपराधी माना जाता है और ऐसे अपराध के लिए राज्य का यह कर्तव्य बनता है कि वह उस अपराधी को दंडित करें। इन सब तरह के अपराधों का उल्लेख भारत में भारतीय दंड संहिता 1860 में किया गया है। अपने एक प्रकरण में उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि अपराधी को अभियोजक और दंडित करना एक सामाजिक आवश्यकता है यह समाज के हित में नहीं है कि कोई अपराधी अपने दायित्व से बच कर कोई अपराध करे। स्टेट ऑफ राजस्थान बनाम ओमप्रकाश के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि बलात्कार मानवता के विरुद्ध अपराध है ऐसे मामलों में अभियुक्त सहानुभूति का पात्र नहीं होता। भारतीय दंड संहिता का इतिहास काफी विस्तृत है। भारत में समय-समय पर भिन्न भिन्न प्रकार के दंड विधान प्रचलित रहे हैं। जहां तक दंड विधि के जन्म का प्रश्न है यह सभ्य समाज की देन है जैसे जैसे सभ्य समाज होता चला गया वैसे ही दंड विधि का विकास होता चला गया। मनुष्य ने धीरे-धीरे अपराधों को इंगित किया तथा उन अपराधों की खोज हुई जो मनुष्य को आघात पहुंचा रहे थें तथा उन अपराधों के लिए दंड का निश्चय किया गया। दंड की अवधारणा समय के साथ बदलती चली गई क्योंकि किसी समय आंख के बदले आंख दंड का भी सिद्धांत भारत में प्रचलित रहा है परंतु यह बर्बर और असभ्य युग की पहचान है। आज हम एक सभ्य युग में रह रहे हैं जहां पर मानव अधिकारों को ध्यान में रखते हुए ही कोई दंड दिया जा सकता है वर्तमान भारत में कारावास, अर्थदंड और फांसी के माध्यम से मृत्यु दंड की व्यवस्था है। दंड विधि का जन्म लोकाचारों और लोक नीतियों के अनुसार हुआ है। इसमें धर्म की भी महत्ती भूमिका रही है क्योंकि लोकनीति धर्म से ही तय हुई है। मध्य युग में मुगल समुदाय ने जिस समय भारत पर शासन किया उस समय भारत की दंड विधि को और अधिक विस्तृत किया। मुस्लिम शासन काल में भारत में मुस्लिम दंड विधि प्रचलित थी और उसी के अनुसार आपराधिक न्याय प्रशासन किया जाता था। यह दंड की विधि कुरान पर आधारित थी तथा इसमें कुछ मुस्लिम शासकों के अपने तर्क भी थे। इस विधि के सिद्धांत प्राकृतिक न्याय सामान्य विवेक के अनुसार नहीं थे अपितु यहां पर सिद्धांत कुरान के अनुरूप थे जो बात कुरान के विरुद्ध होती थी केवल वही अपराध होती थी। ब्रिटिश शासन के आने के बाद मुस्लिम दंड विधि समय के अनुरूप नहीं रह गई थी तथा मुस्लिम दंड विधि के ऐसे बहुत से सिद्धांत थे उस समय के वर्तमान समाज से मेल नहीं खा रहे थे क्योंकि ऐसे बहुत से छोटे छोटे से अपराध थे जिन अपराधों में बड़े से बड़ा दंड आरोपित कर दिया गया था जैसे की चोरी करने की सजा हाथ काटना मुकर्रर कर दी गई थी। भारत में आए अंग्रेजी शासन ने मुस्लिम शासन काल की दंड संहिता को समाप्त कर दिया तथा उसमें से जो आवश्यक हुआ उसे अपनी दंड संहिता में स्थान दे दिया। भारत में ब्रिटिश कालीन दंड विधि का इतिहास 1600 का है। यह प्रथम बार ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की गई थी। ब्रिटिश शासन काल में अनेक चार्टर अधिनियम पारित कर मुस्लिम दंड विधि में सुधार एवं परिवर्तन किए गए इसमें सन 1600 के बाद अनेक परिवर्तन होते चले गए। बर्बर और कठोर दंड की व्यवस्था को धीरे-धीरे समाप्त किया जाने लगा, धीरे धीरे केवल कारावास को ही दंड के रूप में रखा जाने लगा और जघन्य अपराध के लिए मृत्युदंड। इस समय भारत में भारतीय दंड संहिता 1860 उपलब्ध है तथा जिसमें समय-समय पर परिवर्तन किए जातें रहें हैं। जैसी समय की आवश्यकता होती है वैसा परिवर्तन कर दिया जाता है। जिस समय भारतीय दंड संहिता को ब्रिटिशर्स ने तैयार किया था उस समय इसमें 488 धाराएं थी समय के अनुसार इसमें धाराएं बढ़ती चली गई तथा जहां पर धाराएं कम करने का समय आया वहां पर उन धाराओं को निरसित भी कर दिया गया। वर्तमान भारतीय दंड संहिता में 511 धाराएं उपलब्ध है। भारतीय दंड संहिता केवल अपराधियों को दंड देने की व्यवस्था नहीं करती है परंतु यह अभियुक्त के अधिकारों के संबंध में उपचार भी उपलब्ध करती है। विधि में अपराध और दृश्यता के संबंध में कतिपय प्रतिमान निर्धारित किए गए हैं जिन्हें हम अभियुक्त के अधिकार और उपचार भी कह सकते हैं। यह अधिकार और उपचार कई प्रकार से उपलब्ध होते हैं- 1)- जब तक किसी व्यक्ति को दोषी घोषित नहीं कर दिया जाता तब तक उसके निर्दोष होने की अवधारणा की जानी चाहिए अर्थात तब तक कोई व्यक्ति दोषी नहीं माना जाता है, तब तक उस व्यक्ति को सिद्ध दोष अपराधी नहीं माना जाता, यह बात केएम नानावती बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र एआईआर 1962 एससी 605 के प्रकरण में कही गई है। 2)- दोहरे खतरे से सुरक्षा के आधार पर किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक से अधिक बार अभियोजित नहीं किया जा सकता है। 3)- विचारण एवं प्रतिरक्षा के अवसर की स्वतंत्रता का अधिकार यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप है। 4)- वैधानिक कठोरता से रक्षा का अधिकार था किसी भी व्यक्ति के कृत्य के लिए तब तक दंडित नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि संविधि में उसके लिए दंड की व्यवस्था नहीं हो अर्थात किसी व्यक्ति को केवल उसी अपराध के लिए दंडित किया जा सकता है जिस अपराध के लिए दंड विधि में व्यवस्था हो। 5)- निशुल्क विधि सहायता का अधिकार वर्तमान विधि का एक महत्वपूर्ण देन है। अब कोई भी व्यक्ति मात्र गरीबी के कारण न्याय से वंचित नहीं किया जा सकता। किसी व्यक्ति के पास धन उपलब्ध नहीं है तो ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति को निःशुल्क विधिक सहायता देकर उसे न्याय दिया जाएगा। निर्धन व्यक्तियों को भी निशुल्क विधिक सहायता के माध्यम से न्याय उपलब्ध है। भारतीय दंड संहिता संपत्ति के विरुद्ध अपराध मानव शरीर के विरुद्ध अपराध, लोक शांति के विरुद्ध अपराध, धर्म से संबंधित अपराध, राज्य के विरुद्ध अपराध आदि प्रकार के अपराधों का उल्लेख करती है तथा इस ग्रंथ में उन सभी अपराधों को समाविष्ट कर दिया गया है जो किसी भी समाज के लिए घातक है। लेखक द्वारा भारतीय दंड संहिता,1860 को इस आलेख में ग्रंथ इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि यह विशाल है जो संहिता जिस समय भी पढ़ी जाए उस समय नई मालूम होती है क्योंकि इस संहितामें लगभग लगभग मनुष्य द्वारा किए जाने वाले किसी भी कार्य लोप से होने वाले अपराध के संबंध में दंड की व्यवस्था कर दी गई है और दंड के सिद्धांत को भी अपने समतुल्य समतावादी सिद्धांतों के आधार पर गढ़ा गया है कि कोई भी अपराध के लिए अधिक या कम दंड न हो सकें। जो जिस प्रकार का अपराध है जो जितना समाज के लिए घातक है उस अपराध के लिए उतने दंड की व्यवस्था है। भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत दिया जाने वाला दंड व्यथित पक्षकार या फरियादी को मिलने वाला प्रतिकर नहीं है, दंड कोई बदला नहीं है क्योंकि कोई भी व्यक्ति जब अपराध करता है तो वह समाज के विरुद्ध अपराध करता है किसी एक व्यक्ति विशेष के विरुद्ध अपराध नहीं करता है। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि दंड कोई बदला है दंड कोई बदला नहीं होता है अपितु दंड समाज में इस संदेश हेतु आरोपित किया जाता है कि दूसरा व्यक्ति इस प्रकार के अपराध को कारित करने से बचे तथा समाज में वह विसंगतियों का जन्म नहीं हो जिससे कोई भी समाज बर्बाद हो सकता है। भारतीय दंड संहिता का अध्याय 2 व्याख्यात्मक खंड है तथा इस संहिता का सर्वाधिक महत्वपूर्ण खंड है। इस संहिता के इस खंड को यदि समझ लिया जाए तो संहिता को समझने में सरलता होती है, इसमें उन शब्दों की परिभाषा दी गई है जो इस संहिता में स्थान स्थान पर प्रयुक्त हुए हैं। इस अध्याय का अध्ययन अगले आलेख में किया जाएगा। भारतीय दंड संहिता के संपूर्ण अध्ययन के लिए इस सीरीज के किसी भी आलेख को पढ़ने से छोड़ा नहीं जाना चाहिए क्योंकि सभी आलेख अत्यंत सारगर्भित होंगे। उन सारगर्भित आलेखों में संपूर्ण दंड विधान भारतीय दंड संहिता को उल्लेखित कर दिए जाने का सतत प्रयास है।


अगर हम IPC की बात करें तो यह भारत के पहले कानून आयोग की सिफारिश पर 1833 के चार्टर एक्ट के तहत IPC भारतीय दंड संहिता (आई.पी.सी.) 1860 में अस्तित्व में आया | भारतीय दंड संहिता कोड 1 जनवरी, 1862 को ब्रिटिश शासन के दौरान प्रभावी किया गया था | आपको बताता दे कि भारत विभाजन के उपरांत इस  कोड को बाद में स्वतंत्र भारत और पाकिस्तान द्वारा अपनाया गया था। जम्मू और कश्मीर में लागू रणबीर दंड संहिता भी इसी संहिता पर आधारित है। आपको बता दें कि आई.पी.सी.1860 भारत के सभी नागरिकों के लिए लागू है। IPC में कई बार संशोधन भी  किया जा चूका है । IPC में 23 अध्याय तथा इसमें कुल 511 खंड (धारा) हैं।

आईपीसी, 1860 (भारतीय दंड संहिता) एक व्यापक कानून है जो भारत में आपराधिक कानून के वास्तविक पहलुओं को शामिल करता है। यह अपराधों को बताता है और उनमें से प्रत्येक के लिए सजा और जुर्माना बताता है।

धारा 1 – संहिता का नाम और उसके प्रवर्तन का विस्तार

धारा 2 – भारत के भीतर किए गए अपराधों का दण्ड।

 धारा 3 – भारत से परे किए गए किन्तु उसके भीतर विधि के अनुसार विचारणीय अपराधों का दण्ड।

धारा 4 – राज्यक्षेत्रातीत / अपर देशीय अपराधों पर संहिता का विस्तार।

धारा 5 – कुछ विधियों पर इस अधिनियम द्वारा प्रभाव न डाला जाना।

धारा 6 – संहिता में की परिभाषाओं का अपवादों के अध्यधीन समझा जाना।

धारा 7 – एक बार स्पष्टीकॄत वाक्यांश का अभिप्राय।

धारा 8 – लिंग

धारा 9 – वचन

धारा 10 – पुरुष। स्त्री।

धारा 11 – व्यक्ति

धारा 12 – जनता / जन सामान्य

धारा 13 – क्वीन की परिभाषा

धारा 14 – सरकार का सेवक।

धारा 15 – ब्रिटिश इण्डिया की परिभाषा

धारा 16 – गवर्नमेंट आफ इण्डिया की परिभाषा

धारा 17 – सरकार।

धारा 18 – भारत

धारा 19 – न्यायाधीश।

धारा 20 – न्यायालय

धारा 21 – लोक सेवक

धारा 22 – चल सम्पत्ति।

धारा 23 – सदोष अभिलाभ / हानि।

धारा 24 – बेईमानी करना।

धारा 25 – कपटपूर्वक

धारा 26 – विश्वास करने का कारण।

धारा 27 – पत्नी, लिपिक या सेवक के कब्जे में सम्पत्ति।

धारा 28 – कूटकरण।

धारा 29 – दस्तावेज।

धारा 30 – मूल्यवान प्रतिभूति।

धारा 31 – बिल

धारा 32 – कार्यों को दर्शाने वाले शब्दों के अन्तर्गत अवैध लोप शामिल है।

धारा 33 – कार्य

धारा 34 – सामान्य आशय को अग्रसर करने में कई व्यक्तियों द्वारा किए गए कार्य

धारा 35 – जबकि ऐसा कार्य इस कारण आपराधिक है कि वह आपराधिक ज्ञान या आशय से किया गया है

धारा 36 – अंशत: कार्य द्वारा और अंशत: लोप द्वारा कारित परिणाम।

धारा 37 – कई कार्यों में से किसी एक कार्य को करके अपराध गठित करने में सहयोग करना।

धारा 38 – आपराधिक कार्य में संपॄक्त व्यक्ति विभिन्न अपराधों के दोषी हो सकेंगे

धारा 39 – स्वेच्छया।

धारा 40 – अपराध।

धारा 41 – विशेष विधि।

धारा 42 – स्थानीय विधि

धारा 43 – अवैध

धारा 44 – क्षति

धारा 45 – जीवन

धारा 46 – मॄत्यु

धारा 47 – जीवजन्तु

धारा 48 – जलयान

धारा 49 – वर्ष या मास

धारा 50 – धारा

धारा 51 – शपथ।

धारा 52 – सद्भावपूर्वक।

धारा 53 – दण्ड।

धारा 54 – मॄत्यु दण्डादेश का रूपांतरण।

धारा 55 – आजीवन कारावास के दण्डादेश का लघुकरण

धारा 56 – य़ूरोपियों तथा अमरीकियों को दण्ड दासता की सजा।

धारा 57 – दण्डावधियों की भिन्नें

धारा 58 – निर्वासन से दण्डादिष्ट अपराधियों के साथ कैसा व्यवहार किया जाए जब तक वे निर्वासित न कर दिए जाएं

धारा 59 – कारावास के बदले निर्वासनट

धारा 60 – दण्डादिष्ट कारावास के कतिपय मामलों में सम्पूर्ण कारावास या उसका कोई भाग कठिन या सादा हो सकेगा।

धारा 61 – सम्पत्ति के समपहरण का दण्डादेश।

धारा 62 – मॄत्यु, निर्वासन या कारावास से दण्डनीय अपराधियों की बाबत सम्पत्ति का समपहरण ।

धारा 63 – आर्थिक दण्ड/जुर्माने की रकम।

धारा 64 – जुर्माना न देने पर कारावास का दण्डादेश

धारा 65 – जब कि कारावास और जुर्माना दोनों आदिष्ट किए जा सकते हैं, तब जुर्माना न देने पर कारावास की अवधि

धारा 66 – जुर्माना न देने पर किस भांति का कारावास दिया जाए।

धारा 67 – आर्थिक दण्ड न चुकाने पर कारावास, जबकि अपराध केवल आर्थिक दण्ड से दण्डनीय हो।

धारा 68 – आर्थिक दण्ड के भुगतान पर कारावास का समाप्त हो जाना।

धारा 69 – जुर्माने के आनुपातिक भाग के दे दिए जाने की दशा में कारावास का पर्यवसान

धारा 70 – जुर्माने का छह वर्ष के भीतर या कारावास के दौरान वसूल किया जाना। मॄत्यु सम्पत्ति को दायित्व से उन्मुक्त नहीं करती।

धारा 71 – कई अपराधों से मिलकर बने अपराध के लिए दण्ड की अवधि।

धारा 72 – कई अपराधों में से एक के दोषी व्यक्ति के लिए दण्ड जबकि निर्णय में यह कथित है कि यह संदेह है कि वह किस अपराध का दोषी है

धारा 73 – एकांत परिरोध

धारा 74 – एकांत परिरोध की अवधि

धारा 75 – पूर्व दोषसिद्धि के पश्चात् अध्याय 12 या अध्याय 17 के अधीन कतिपय अपराधों के लिए वर्धित दण्ड

धारा 76 – विधि द्वारा आबद्ध या तथ्य की भूल के कारण अपने आप के विधि द्वारा आबद्ध होने का विश्वास करने वाले व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य।

धारा 77 – न्यायिकतः कार्य करते हुए न्यायाधीश का कार्य

धारा 78 – न्यायालय के निर्णय या आदेश के अनुसरण में किया गया कार्य

धारा 79 – विधि द्वारा न्यायानुमत या तथ्य की भूल से अपने को विधि द्वारा न्यायानुमत होने का विश्वास करने वाले व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य

धारा 80 – विधिपूर्ण कार्य करने में दुर्घटना।

धारा 81 – आपराधिक आशय के बिना और अन्य क्षति के निवारण के लिए किया गया कार्य जिससे क्षति कारित होना संभाव्य है।

धारा 82 – सात वर्ष से कम आयु के शिशु का कार्य।

धारा 83 – सात वर्ष से ऊपर किंतु बारह वर्ष से कम आयु के अपरिपक्व समझ के शिशु का कार्य

धारा 84 – विकॄतचित व्यक्ति का कार्य।

धारा 85 – ऐसे व्यक्ति का कार्य जो अपनी इच्छा के विरुद्ध मत्तता में होने के कारण निर्णय पर पहुंचने में असमर्थ है

धारा 86 – किसी व्यक्ति द्वारा, जो मत्तता में है, किया गया अपराध जिसमें विशेष आशय या ज्ञान का होना अपेक्षित है

धारा 87 – सम्मति से किया गया कार्य जिससे मॄत्यु या घोर उपहति कारित करने का आशय न हो और न उसकी संभाव्यता का ज्ञान हो

धारा 88 – किसी व्यक्ति के फायदे के लिए सम्मति से सद््भावपूर्वक किया गया कार्य जिससे मॄत्यु कारित करने का आशय नहीं है

धारा 89 – संरक्षक द्वारा या उसकी सम्मति से शिशु या उन्मत्त व्यक्ति के फायदे के लिए सद््भावपूर्वक किया गया कार्य

धारा 90 – सम्मति, जिसके संबंध में यह ज्ञात हो कि वह भय या भ्रम के अधीन दी गई है

धारा 91 – ऐसे अपवादित कार्य जो कारित क्षति के बिना भी स्वतः अपराध है।

धारा 92 – सहमति के बिना किसी व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक किया गया कार्य।

धारा 93 – सद््भावपूर्वक दी गई संसूचना

धारा 94 – वह कार्य जिसको करने के लिए कोई व्यक्ति धमकियों द्वारा विवश किया गया है

धारा 95 – तुच्छ अपहानि कारित करने वाला कार्य

धारा 96 – प्राइवेट प्रतिरक्षा में की गई बातें

धारा 97 – शरीर तथा संपत्ति की निजी प्रतिरक्षा का अधिकार।

धारा 98 – ऐसे व्यक्ति के कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार जो विकॄतचित्त आदि हो

धारा 99 – कार्य, जिनके विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है

धारा 100 – किसी की मॄत्यु कारित करने पर शरीर की निजी प्रतिरक्षा का अधिकार कब लागू होता है।

धारा 101 – मॄत्यु से भिन्न कोई क्षति कारित करने के अधिकार का विस्तार कब होता है।

धारा 102 – शरीर की निजी प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बना रहना।

धारा 103 – कब संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मॄत्यु कारित करने तक का होता है

धारा 104 – मॄत्यु से भिन्न कोई क्षति कारित करने तक के अधिकार का विस्तार कब होता है।

धारा 105 – सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बना रहना

धारा 106 – घातक हमले के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार जब कि निर्दोष व्यक्ति को अपहानि होने की जोखिम है

धारा 107 – किसी बात का दुष्प्रेरण

धारा 108 – दुष्प्रेरक।

धारा 108क – भारत से बाहर के अपराधों का भारत में दुष्प्रेरण

धारा 109 – अपराध के लिए उकसाने के लिए दण्ड, यदि दुष्प्रेरित कार्य उसके परिणामस्वरूप किया जाए, और जहां कि उसके दण्ड के लिए कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है।

धारा 110 – दुष्रेरण का दण्ड, यदि दुष्प्रेरित व्यक्ति दुष्प्रेरक के आशय से भिन्न आशय से कार्य करता है।

धारा 111 – दुष्प्रेरक का दायित्व जब एक कार्य का दुष्प्रेरण किया गया है और उससे भिन्न कार्य किया गया है।

धारा 112 – दुष्प्रेरक कब दुष्प्रेरित कार्य के लिए और किए गए कार्य के लिए आकलित दण्ड से दण्डनीय है

धारा 113 – दुष्प्रेरित कार्य से कारित उस प्रभाव के लिए दुष्प्रेरक का दायित्व जो दुष्प्रेरक द्वारा आशयित से भिन्न हो।

धारा 114 – अपराध किए जाते समय दुष्प्रेरक की उपस्थिति।

धारा 115 – मॄत्युदण्ड या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध का दुष्प्रेरण – यदि दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप अपराध नहीं किया जाता।

धारा 116 – कारावास से दण्डनीय अपराध का दुष्प्रेरण – यदि अपराध न किया जाए।

धारा 117 – सामान्य जन या दस से अधिक व्यक्तियों द्वारा अपराध किए जाने का दुष्प्रेरण।

धारा 118 – मॄत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय अपराध करने की परिकल्पना को छिपाना

धारा 119 – किसी ऐसे अपराध के किए जाने की परिकल्पना का लोक सेवक द्वारा छिपाया जाना, जिसका निवारण करना उसका कर्तव्य है

धारा 120 – कारावास से दण्डनीय अपराध करने की परिकल्पना को छिपाना।

धारा 120क – आपराधिक षड््यंत्र की परिभाषा

धारा 120ख – आपराधिक षड््यंत्र का दंड

धारा 121 – भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करना या युद्ध करने का प्रयत्न करना या युद्ध करने का दुष्प्रेरण करना।

धारा 121क – धारा 121 द्वारा दंडनीय अपराधों को करने का षड््यंत्र

धारा 122 – भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करने के आशय से आयुध आदि संग्रहित करना।

धारा 123 – युद्ध करने की परिकल्पना को सुगम बनाने के आशय से छिपाना।

धारा 124 – किसी विधिपूर्ण शक्ति का प्रयोग करने के लिए विवश करने या उसका प्रयोग अवरोधित करने के आशय से राष्ट्रपति, राज्यपाल आदि पर हमला करना

धारा 124क – राजद्रोह

धारा 125 – भारत सरकार से मैत्री संबंध रखने वाली किसी एशियाई शक्ति के विरुद्ध युद्ध करना

धारा 126 – भारत सरकार के साथ शांति का संबंध रखने वाली शक्ति के राज्यक्षेत्र में लूटपाट करना।

धारा 127 – धारा 125 और 126 में वर्णित युद्ध या लूटपाट द्वारा ली गई सम्पत्ति प्राप्त करना।

धारा 128 – लोक सेवक का स्वेच्छया राजकैदी या युद्धकैदी को निकल भागने देना।

धारा 129 – लोक सेवक का उपेक्षा से किसी कैदी का निकल भागना सहन करना।

धारा 130 – ऐसे कैदी के निकल भागने में सहायता देना, उसे छुड़ाना या संश्रय देना

धारा 131 – विद्रोह का दुष्प्रेरण या किसी सैनिक, नौसेनिक या वायुसैनिक को कर्तव्य से विचलित करने का प्रयत्न करना

धारा 132 – विद्रोह का दुष्प्रेरण यदि उसके परिणामस्वरूप विद्रोह हो जाए।

धारा 133 – सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा अपने वरिष्ठ अधिकारी जब कि वह अधिकारी अपने पद-निष्पादन में हो, पर हमले का दुष्प्रेरण।

धारा 134 – हमले का दुष्प्रेरण जिसके परिणामस्वरूप हमला किया जाए।

धारा 135 – सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा परित्याग का दुष्प्रेरण।

धारा 136 – अभित्याजक को संश्रय देना

धारा 137 – मास्टर की उपेक्षा से किसी वाणिज्यिक जलयान पर छुपा हुआ अभित्याजक

धारा 138 – सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा अनधीनता के कार्य का दुष्प्रेरण।

धारा 138क – पूर्वोक्त धाराओं का भारतीय सामुद्रिक सेवा को लागू होना

धारा 139 – कुछ अधिनियमों के अध्यधीन व्यक्ति।

धारा 140 – सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली पोशाक पहनना या प्रतीक चिह्न धारण करना।

धारा 141 – विधिविरुद्ध जनसमूह।

धारा 142 – विधिविरुद्ध जनसमूह का सदस्य होना।

धारा 143 – गैरकानूनी जनसमूह का सदस्य होने के नाते दंड

धारा 144 – घातक आयुध से सज्जित होकर विधिविरुद्ध जनसमूह में सम्मिलित होना।

धारा 145 – किसी विधिविरुद्ध जनसमूह जिसे बिखर जाने का समादेश दिया गया है, में जानबूझकर शामिल होना या बने रहना

धारा 146 – उपद्रव करना।

धारा 147 – बल्वा करने के लिए दंड

धारा 148 – घातक आयुध से सज्जित होकर उपद्रव करना।

धारा 149 – विधिविरुद्ध जनसमूह का हर सदस्य, समान लक्ष्य का अभियोजन करने में किए गए अपराध का दोषी।

धारा 150 – विधिविरुद्ध जनसमूह में सम्मिलित करने के लिए व्यक्तियों का भाड़े पर लेना या भाड़े पर लेने के लिए बढ़ावा देना।

धारा 151 – पांच या अधिक व्यक्तियों के जनसमूह जिसे बिखर जाने का समादेश दिए जाने के पश्चात् जानबूझकर शामिल होना या बने रहना

धारा 152 – लोक सेवक के उपद्रव / दंगे आदि को दबाने के प्रयास में हमला करना या बाधा डालना।

धारा 153 – उपद्रव कराने के आशय से बेहूदगी से प्रकोपित करना

धारा 153क – धर्म, मूलवंश, भाषा, जन्म-स्थान, निवास-स्थान, इत्यादि के आधारों पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता का संप्रवर्तन और सौहार्द्र बने रहने पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले कार्य करना।

धारा 153ख – राष्ट्रीय अखंडता पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले लांछन, प्राख्यान–(

धारा 154 – उस भूमि का स्वामी या अधिवासी, जिस पर ग़ैरक़ानूनी जनसमूह एकत्रित हो

धारा 155 – व्यक्ति जिसके फायदे के लिए उपद्रव किया गया हो का दायित्व

धारा 156 – उस स्वामी या अधिवासी के अभिकर्ता का दायित्व, जिसके फायदे के लिए उपद्रव किया जाता है

धारा 157 – विधिविरुद्ध जनसमूह के लिए भाड़े पर लाए गए व्यक्तियों को संश्रय देना।

धारा 158 – विधिविरुद्ध जमाव या बल्वे में भाग लेने के लिए भाड़े पर जाना

धारा 159 – दंगा

धारा 160 – उपद्रव करने के लिए दण्ड।

धारा 161 से 165 – लोक सेवकों द्वारा या उनसे संबंधित अपराधों के विषय में

धारा 166 – लोक सेवक द्वारा किसी व्यक्ति को क्षति पहुँचाने के आशय से विधि की अवज्ञा करना।

धारा 166क – कानून के तहत महीने दिशा अवहेलना लोक सेवक

धारा 166ख – अस्पताल द्वारा शिकार की गैर उपचार

धारा 167 – लोक सेवक, जो क्षति कारित करने के आशय से अशुद्ध दस्तावेज रचता है।

धारा 168 – लोक सेवक, जो विधिविरुद्ध रूप से व्यापार में लगता है

धारा 169 – लोक सेवक, जो विधिविरुद्ध रूप से संपत्ति क्रय करता है या उसके लिए बोली लगाता है।

धारा 170 – लोक सेवक का प्रतिरूपण।

धारा 171 – कपटपूर्ण आशय से लोक सेवक के उपयोग की पोशाक पहनना या निशानी को धारण करना।

धारा 171क – अभ्यर्थी, निर्वाचन अधिकार परिभाषित

धारा 171ख – रिश्वत

धारा 171ग – निर्वाचनों में असम्यक्् असर डालना

धारा 171घ – निर्वाचनों में प्रतिरूपण

धारा 171ङ – रिश्वत के लिए दण्ड

धारा 171च – निर्वाचनों में असम्यक् असर डालने या प्रतिरूपण के लिए दण्ड

धारा 171छ – निर्वाचन के सिलसिले में मिथ्या कथन

धारा 171ज – निर्वाचन के सिलसिले में अवैध संदाय

धारा 171झ – निर्वाचन लेखा रखने में असफलता

धारा 172 – समनों की तामील या अन्य कार्यवाही से बचने के लिए फरार हो जाना

धारा 173 – समन की तामील का या अन्य कार्यवाही का या उसके प्रकाशन का निवारण करना।

धारा 174 – लोक सेवक का आदेश न मानकर गैर-हाजिर रहना

धारा 175 – दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख] पेश करने के लिए वैध रूप से आबद्ध व्यक्ति का लोक सेवक को 1[दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख] पेश करने का लोप

धारा 176 – सूचना या इत्तिला देने के लिए कानूनी तौर पर आबद्ध व्यक्ति द्वारा लोक सेवक को सूचना या इत्तिला देने का लोप।

धारा 177 – झूठी सूचना देना।

धारा 178 – शपथ या प्रतिज्ञान से इंकार करना, जबकि लोक सेवक द्वारा वह वैसा करने के लिए सम्यक् रूप से अपेक्षित किया जाए

धारा 179 – प्रश्न करने के लिए प्राधिकॄत लोक सेवक को उत्तर देने से इंकार करना।

धारा 180 – कथन पर हस्ताक्षर करने से इंकार

धारा 181 – शपथ दिलाने या अभिपुष्टि कराने के लिए प्राधिकॄत लोक सेवक के, या व्यक्ति के समक्ष शपथ या अभिपुष्टि पर झूठा बयान।

धारा 182 – लोक सेवक को अपनी विधिपूर्ण शक्ति का उपयोग दूसरे व्यक्ति की क्षति करने के आशय से झूठी सूचना देना

धारा 183 – लोक सेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार द्वारा संपत्ति लिए जाने का प्रतिरोध

धारा 184 – लोक सेवक के प्राधिकार द्वारा विक्रय के लिए प्रस्थापित की गई संपत्ति के विक्रय में बाधा डालना।

धारा 185 – लोक सेवक के प्राधिकार द्वारा विक्रय के लिए प्रस्थापित की गई संपत्ति का अवैध क्रय या उसके लिए अवैध बोली लगाना।

धारा 186 – लोक सेवक के लोक कॄत्यों के निर्वहन में बाधा डालना।

धारा 187 – लोक सेवक की सहायता करने का लोप, जबकि सहायता देने के लिए विधि द्वारा आबद्ध हो

धारा 188 – लोक सेवक द्वारा विधिवत रूप से प्रख्यापित आदेश की अवज्ञा।

धारा 189 – लोक सेवक को क्षति करने की धमकी

धारा 190 – लोक सेवक से संरक्षा के लिए आवेदन करने से रोकने हेतु किसी व्यक्ति को उत्प्रेरित करने के लिए क्षति की धमकी।

धारा 191 – झूठा साक्ष्य देना।

धारा 192 – झूठा साक्ष्य गढ़ना।

धारा 193 – मिथ्या साक्ष्य के लिए दंड

धारा 194 – मॄत्यु से दण्डनीय अपराध के लिए दोषसिद्धि कराने के आशय से झूठा साक्ष्य देना या गढ़ना।

धारा 195 – आजीवन कारावास या कारावास से दण्डनीय अपराध के लिए दोषसिद्धि प्राप्त करने के आशय से झूठा साक्ष्य देना या गढ़ना

धारा 196 – उस साक्ष्य को काम में लाना जिसका मिथ्या होना ज्ञात है

धारा 197 – मिथ्या प्रमाणपत्र जारी करना या हस्ताक्षरित करना

धारा 198 – प्रमाणपत्र जिसका नकली होना ज्ञात है, असली के रूप में प्रयोग करना।

धारा 199 – विधि द्वारा साक्ष्य के रूप में लिये जाने योग्य घोषणा में किया गया मिथ्या कथन।

धारा 200 – ऐसी घोषणा का मिथ्या होना जानते हुए सच्ची के रूप में प्रयोग करना।

धारा 201 – अपराध के साक्ष्य का विलोपन, या अपराधी को प्रतिच्छादित करने के लिए झूठी जानकारी देना।

धारा 202 – सूचना देने के लिए आबद्ध व्यक्ति द्वारा अपराध की सूचना देने का साशय लोप।

धारा 203 – किए गए अपराध के विषय में मिथ्या इत्तिला देना

धारा 204 – साक्ष्य के रूप में किसी 3[दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख] का पेश किया जाना निवारित करने के लिए उसको नष्ट करना

धारा 205 – वाद या अभियोजन में किसी कार्य या कार्यवाही के प्रयोजन से मिथ्या प्रतिरूपण

धारा 206 – संपत्ति को समपहरण किए जाने में या निष्पादन में अभिगॄहीत किए जाने से निवारित करने के लिए उसे कपटपूर्वक हटाना या छिपाना

धारा 207 – संपत्ति पर उसके जब्त किए जाने या निष्पादन में अभिगॄहीत किए जाने से बचाने के लिए कपटपूर्वक दावा।

धारा 208 – ऐसी राशि के लिए जो शोध्य न हो कपटपूर्वक डिक्री होने देना सहन करना

धारा 209 – बेईमानी से न्यायालय में मिथ्या दावा करना

धारा 210 – ऐसी राशि के लिए जो शोध्य नहीं है कपटपूर्वक डिक्री अभिप्राप्त करना

धारा 211 – क्षति करने के आशय से अपराध का झूठा आरोप।

धारा 212 – अपराधी को संश्रय देना।

धारा 213 – अपराधी को दंड से प्रतिच्छादित करने के लिए उपहार आदि लेना

धारा 214 – अपराधी के प्रतिच्छादन के प्रतिफलस्वरूप उपहार की प्रस्थापना या संपत्ति का प्रत्यावर्तन

धारा 215 – चोरी की संपत्ति इत्यादि के वापस लेने में सहायता करने के लिए उपहार लेना

धारा 216 – ऐसे अपराधी को संश्रय देना, जो अभिरक्षा से निकल भागा है या जिसको पकड़ने का आदेश दिया जा चुका है।

धारा 216क – लुटेरों या डाकुओं को संश्रय देने के लिए शास्ति

धारा 216ख – धारा 212, धारा 216 और धारा 216क में संश्रय की परिभाषा

धारा 217 – लोक सेवक द्वारा किसी व्यक्ति को दंड से या किसी संपत्ति के समपहरण से बचाने के आशय से विधि के निदेश की अवज्ञा

धारा 218 – किसी व्यक्ति को दंड से या किसी संपत्ति को समपहरण से बचाने के आशय से लोक सेवक द्वारा अशुद्ध अभिलेख या लेख की रचना

धारा 219 – न्यायिक कार्यवाही में विधि के प्रतिकूल रिपोर्ट आदि का लोक सेवक द्वारा भ्रष्टतापूर्वक किया जाना

धारा 220 – प्राधिकार वाले व्यक्ति द्वारा जो यह जानता है कि वह विधि के प्रतिकूल कार्य कर रहा है, विचारण के लिए या परिरोध करने के लिए सुपुर्दगी

धारा 221 – पकड़ने के लिए आबद्ध लोक सेवक द्वारा पकड़ने का साशय लोप

धारा 222 – दंडादेश के अधीन या विधिपूर्वक सुपुर्द किए गए व्यक्ति को पकड़ने के लिए आबद्ध लोक सेवक द्वारा पकड़ने का साशय लोप

धारा 223 – लोक सेवक द्वारा उपेक्षा से परिरोध या अभिरक्षा में से निकल भागना सहन करना।

धारा 224 – किसी व्यक्ति द्वारा विधि के अनुसार अपने पकड़े जाने में प्रतिरोध या बाधा।

धारा 225 – किसी अन्य व्यक्ति के विधि के अनुसार पकड़े जाने में प्रतिरोध या बाधा

धारा 225क – उन दशाओं में जिनके लिए अन्यथा उपबंध नहीं है लोक सेवक द्वारा पकड़ने का लोप या निकल भागना सहन करना

धारा 225ख – अन्यथा अनुपबंधित दशाओं में विधिपूर्वक पकड़ने में प्रतिरोध या बाधा या निकल भागना या छुड़ाना

धारा 226 – निर्वासन से विधिविरुद्ध वापसी।

धारा 227 – दंड के परिहार की शर्त का अतिक्रमण

धारा 228 – न्यायिक कार्यवाही में बैठे हुए लोक सेवक का साशय अपमान या उसके कार्य में विघ्न

धारा 228क – कतिपय अपराधों आदि से पीड़ित व्यक्ति की पहचान का प्रकटीकरण

धारा 229 – जूरी सदस्य या आंकलन कर्ता का प्रतिरूपण।

धारा 230 – सिक्का की परिभाषा

धारा 231 – सिक्के का कूटकरण

धारा 232 – भारतीय सिक्के का कूटकरण

धारा 233 – सिक्के के कूटकरण के लिए उपकरण बनाना या बेचना

धारा 234 – भारतीय सिक्के के कूटकरण के लिए उपकरण बनाना या बेचना

धारा 235 – सिक्के के कूटकरण के लिए उपकरण या सामग्री उपयोग में लाने के प्रयोजन से उसे कब्जे में रखना

धारा 236 – भारत से बाहर सिक्के के कूटकरण का भारत में दुष्प्रेरण

धारा 237 – कूटकॄत सिक्के का आयात या निर्यात

धारा 238 – भारतीय सिक्के की कूटकॄतियों का आयात या निर्यात

धारा 239 – सिक्के का परिदान जिसका कूटकॄत होना कब्जे में आने के समय ज्ञात था

धारा 240 – उस भारतीय सिक्के का परिदान जिसका कूटकॄत होना कब्जे में आने के समय ज्ञात था

धारा 241 – किसी सिक्के का असली सिक्के के रूप में परिदान, जिसका परिदान करने वाला उस समय जब वह उसके कब्जे में पहली बार आया था, कूटकॄत होना नहीं जानता था

धारा 242 – कूटकॄत सिक्के पर ऐसे व्यक्ति का कब्जा जो उस समय उसका कूटकॄत होना जानता था जब वह उसके कब्जे में आया था

धारा 243 – भारतीय सिक्के पर ऐसे व्यक्ति का कब्जा जो उसका कूटकॄत होना उस समय जानता था जब वह उसके कब्जे में आया था

धारा 244 – टकसाल में नियोजित व्यक्ति द्वारा सिक्के को उस वजन या मिश्रण से भिन्न कारित किया जाना जो विधि द्वारा नियत है

धारा 245 – टकसाल से सिक्का बनाने का उपकरण विधिविरुद्ध रूप से लेना

धारा 246 – कपटपूर्वक या बेईमानी से सिक्के का वजन कम करना या मिश्रण परिवर्तित करना

धारा 247 – कपटपूर्वक या बेईमानी से भारतीय सिक्के का वजन कम करना या मिश्रण परिवर्तित करना

धारा 248 – इस आशय से किसी सिक्के का रूप परिवर्तित करना कि वह भिन्न प्रकार के सिक्के के रूप में चल जाए

धारा 249 – इस आशय से भारतीय सिक्के का रूप परिवर्तित करना कि वह भिन्न प्रकार के सिक्के के रूप में चल जाए

धारा 250 – ऐसे सिक्के का परिदान जो इस ज्ञान के साथ कब्जे में आया हो कि उसे परिवर्तित किया गया है

धारा 251 – भारतीय सिक्के का परिदान जो इस ज्ञान के साथ कब्जे में आया हो कि उसे परिवर्तित किया गया है

धारा 252 – ऐसे व्यक्ति द्वारा सिक्के पर कब्जा जो उसका परिवर्तित होना उस समय जानता था जब वह उसके कब्जे में आया

धारा 253 – ऐसे व्यक्ति द्वारा भारतीय सिक्के पर कब्जा जो उसका परिवर्तित होना उस समय जानता था जब वह उसके कब्जे में आया

धारा 254 – सिक्के का असली सिक्के के रूप में परिदान जिसका परिदान करने वाला उस समय जब वह उसके कब्जे में पहली बार आया था, परिवर्तित होना नहीं जानता था

धारा 255 – सरकारी स्टाम्प का कूटकरण

धारा 256 – सरकारी स्टाम्प के कूटकरण के लिए उपकरण या सामग्री कब्जे में रखना

धारा 257 – सरकारी स्टाम्प के कूटकरण के लिए उपकरण बनाना या बेचना

धारा 258 – कूटकॄत सरकारी स्टाम्प का विक्रय

धारा 259 – सरकारी कूटकॄत स्टाम्प को कब्जे में रखना

धारा 260 – किसी सरकारी स्टाम्प को, कूटकॄत जानते हुए उसे असली स्टाम्प के रूप में उपयोग में लाना

धारा 261 – इस आशय से कि सरकार को हानि कारित हो, उस पदार्थ पर से, जिस पर सरकारी स्टाम्प लगा हुआ है, लेख मिटाना या दस्तावेज से वह स्टाम्प हटाना जो उसके लिए उपयोग में लाया गया है

धारा 262 – ऐसे सरकारी स्टाम्प का उपयोग जिसके बारे में ज्ञात है कि उसका पहले उपयोग हो चुका है

धारा 263 – स्टाम्प के उपयोग किए जा चुकने के द्योतक चिन्ह का छीलकर मिटाना

धारा 263क – बनावटी स्टाम्पों का प्रतिषेघ

धारा 264 – तोलने के लिए खोटे उपकरणों का कपटपूर्वक उपयोग

धारा 265 – खोटे बाट या माप का कपटपूर्वक उपयोग

धारा 266 – खोटे बाट या माप को कब्जे में रखना

धारा 267 – खोटे बाट या माप का बनाना या बेचना

धारा 268 – लोक न्यूसेन्स

धारा 269 – उपेक्षापूर्ण कार्य जिससे जीवन के लिए संकटपूर्ण रोग का संक्रम फैलना संभाव्य हो

धारा 270 – परिद्वेषपूर्ण कार्य, जिससे जीवन के लिए संकटपूर्ण रोग का संक्रम फैलना संभाव्य हो

धारा 271 – करन्तीन के नियम की अवज्ञा

धारा 272 – विक्रय के लिए आशयित खाद्य या पेय वस्तु का अपमिश्रण।

धारा 273 – अपायकर खाद्य या पेय का विक्रय

धारा 274 – औषधियों का अपमिश्रण

धारा 275 – अपमिश्रित ओषधियों का विक्रय

धारा 276 – ओषधि का भिन्न औषधि या निर्मिति के तौर पर विक्रय

धारा 277 – लोक जल-स्रोत या जलाशय का जल कलुषित करना

धारा 278 – वायुमण्डल को स्वास्थ्य के लिए अपायकर बनाना

धारा 279 – सार्वजनिक मार्ग पर उतावलेपन से वाहन चलाना या हांकना

धारा 280 – जलयान का उतावलेपन से चलाना

धारा 281 – भ्रामक प्रकाश, चिन्ह या बोये का प्रदर्शन

धारा 282 – अक्षमकर या अति लदे हुए जलयान में भाड़े के लिए जलमार्ग से किसी व्यक्ति का प्रवहण

धारा 283 – लोक मार्ग या पथ-प्रदर्शन मार्ग में संकट या बाधा कारित करना।

धारा 284 – विषैले पदार्थ के संबंध में उपेक्षापूर्ण आचरण

धारा 285 – अग्नि या ज्वलनशील पदार्थ के सम्बन्ध में उपेक्षापूर्ण आचरण।

धारा 286 – विस्फोटक पदार्थ के बारे में उपेक्षापूर्ण आचरण

धारा 287 – मशीनरी के सम्बन्ध में उपेक्षापूर्ण आचरण

धारा 288 – किसी निर्माण को गिराने या उसकी मरम्मत करने के संबंध में उपेक्षापूर्ण आचरण

धारा 289 – जीवजन्तु के संबंध में उपेक्षापूर्ण आचरण।

धारा 290 – अन्यथा अनुपबन्धित मामलों में लोक बाधा के लिए दण्ड।

धारा 291 – न्यूसेन्स बन्द करने के व्यादेश के पश्चात् उसका चालू रखना

धारा 292 – अश्लील पुस्तकों आदि का विक्रय आदि।

धारा 2925क – विमर्शित और विद्वेषपूर्ण कार्य जो किसी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उसकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आशय से किए गए हों

धारा 292क – Printing,etc, of grossly indecent or securrilous matter or matter intended for blackmail

धारा 293 – तरुण व्यक्ति को अश्लील वस्तुओ का विक्रय आदि

धारा 294 – अश्लील कार्य और गाने

धारा 294क – लाटरी कार्यालय रखना

धारा 295 – किसी वर्ग के धर्म का अपमान करने के आशय से उपासना के स्थान को क्षति करना या अपवित्र करना।

धारा 296 – धार्मिक जमाव में विघ्न करना

धारा 297 – कब्रिस्तानों आदि में अतिचार करना

धारा 298 – धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के सविचार आशय से शब्द उच्चारित करना आदि।

धारा 299 – आपराधिक मानव वध

धारा 300 – हत्या

धारा 301 – जिस व्यक्ति की मॄत्यु कारित करने का आशय था उससे भिन्न व्यक्ति की मॄत्यु करके आपराधिक मानव वध करना।

धारा 302 – हत्या के लिए दण्ड

धारा 303 – आजीवन कारावास से दण्डित व्यक्ति द्वारा हत्या के लिए दण्ड।

धारा 304 – हत्या की श्रेणी में न आने वाली गैर इरादतन हत्या के लिए दण्ड

धारा 304क – उपेक्षा द्वारा मॄत्यु कारित करना

धारा 304ख – दहेज मॄत्यु

धारा 305 – शिशु या उन्मत्त व्यक्ति की आत्महत्या का दुष्प्रेरण।

धारा 306 – आत्महत्या का दुष्प्रेरण

धारा 307 – हत्या करने का प्रयत्न

धारा 308 – गैर इरादतन हत्या करने का प्रयास

धारा 309 – आत्महत्या करने का प्रयत्न।

धारा 310 – ठग।

धारा 311 – ठगी के लिए दण्ड।

धारा 312 – गर्भपात कारित करना।

धारा 313 – स्त्री की सहमति के बिना गर्भपात कारित करना।

धारा 314 – गर्भपात कारित करने के आशय से किए गए कार्यों द्वारा कारित मॄत्यु।

धारा 315 – शिशु का जीवित पैदा होना रोकने या जन्म के पश्चात् उसकी मॄत्यु कारित करने के आशय से किया गया कार्य।

धारा 316 – ऐसे कार्य द्वारा जो गैर-इरादतन हत्या की कोटि में आता है, किसी सजीव अजात शिशु की मॄत्यु कारित करना।

धारा 317 – शिशु के पिता या माता या उसकी देखरेख रखने वाले व्यक्ति द्वारा बारह वर्ष से कम आयु के शिशु का परित्याग और अरक्षित डाल दिया जाना।

धारा 318 – मॄत शरीर के गुप्त व्ययन द्वारा जन्म छिपाना

धारा 319 – क्षति पहुँचाना।

धारा 320 – घोर आघात।

धारा 321 – स्वेच्छया उपहति कारित करना

धारा 322 – स्वेच्छया घोर उपहति कारित करना

धारा 323 – जानबूझ कर स्वेच्छा से किसी को चोट पहुँचाने के लिए दण्ड

धारा 324 – खतरनाक आयुधों या साधनों द्वारा स्वेच्छया उपहति कारित करना

धारा 325 – स्वेच्छापूर्वक किसी को गंभीर चोट पहुचाने के लिए दण्ड

धारा 326 – खतरनाक आयुधों या साधनों द्वारा स्वेच्छापूर्वक घोर उपहति कारित करना

धारा 326क – एसिड हमले

धारा 326ख – एसिड हमला करने का प्रयास

धारा 327 – संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति की जबरन वसूली करने के लिए या अवैध कार्य कराने को मजबूर करने के लिए स्वेच्छापूर्वक चोट पहुँचाना।

धारा 328 – अपराध करने के आशय से विष इत्यादि द्वारा क्षति कारित करना।

धारा 329 – सम्पत्ति उद्दापित करने के लिए या अवैध कार्य कराने को मजबूर करने के लिए स्वेच्छया घोर उपहति कारित करना

धारा 330 – संस्वीकॄति जबरन वसूली करने या विवश करके संपत्ति का प्रत्यावर्तन कराने के लिए स्वेच्छया क्षति कारित करना।

धारा 331 – संस्वीकॄति उद्दापित करने के लिए या विवश करके सम्पत्ति का प्रत्यावर्तन कराने के लिए स्वेच्छया घोर उपहति कारित करना

धारा 332 – लोक सेवक अपने कर्तव्य से भयोपरत करने के लिए स्वेच्छा से चोट पहुँचाना

धारा 333 – लोक सेवक को अपने कर्तव्यों से भयोपरत करने के लिए स्वेच्छया घोर क्षति कारित करना।

धारा 334 – प्रकोपन पर स्वेच्छया क्षति करना

धारा 335 – प्रकोपन पर स्वेच्छया घोर उपहति कारित करना

धारा 336 – दूसरों के जीवन या व्यक्तिगत सुरक्षा को ख़तरा पहुँचाने वाला कार्य।

धारा 337 – किसी कार्य द्वारा, जिससे मानव जीवन या किसी की व्यक्तिगत सुरक्षा को ख़तरा हो, चोट पहुँचाना कारित करना

धारा 338 – किसी कार्य द्वारा, जिससे मानव जीवन या किसी की व्यक्तिगत सुरक्षा को ख़तरा हो, गंभीर चोट पहुँचाना कारित करना

धारा 339 – सदोष अवरोध।

धारा 340 – सदोष परिरोध या गलत तरीके से प्रतिबंधित करना।

धारा 341 – सदोष अवरोध के लिए दण्ड

धारा 342 – ग़लत तरीके से प्रतिबंधित करने के लिए दण्ड।

धारा 343 – तीन या अधिक दिनों के लिए सदोष परिरोध।

धारा 344 – दस या अधिक दिनों के लिए सदोष परिरोध।

धारा 345 – ऐसे व्यक्ति का सदोष परिरोध जिसके छोड़ने के लिए रिट निकल चुका है

धारा 346 – गुप्त स्थान में सदोष परिरोध।

धारा 347 – सम्पत्ति की जबरन वसूली करने के लिए या अवैध कार्य करने के लिए मजबूर करने के लिए सदोष परिरोध।

धारा 348 – संस्वीकॄति उद्दापित करने के लिए या विवश करके सम्पत्ति का प्रत्यावर्तन करने के लिए सदोष परिरोध

धारा 349 – बल।

धारा 350 – आपराधिक बल

धारा 351 – हमला।

धारा 352 – गम्भीर प्रकोपन के बिना हमला करने या आपराधिक बल का प्रयोग करने के लिए दण्ड

धारा 353 – लोक सेवक को अपने कर्तव्य के निर्वहन से भयोपरत करने के लिए हमला या आपराधिक बल का प्रयोग

धारा 354 – स्त्री की लज्जा भंग करने के आशय से उस पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग

धारा 354क – यौन उत्पीड़न

धारा 354ख – एक औरत नंगा करने के इरादे के साथ कार्य

धारा 354ग – छिप कर देखना

धारा 354घ – पीछा

धारा 355 – गम्भीर प्रकोपन होने से अन्यथा किसी व्यक्ति का अनादर करने के आशय से उस पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग

धारा 356 – हमला या आपराधिक बल प्रयोग द्वारा किसी व्यक्ति द्वारा ले जाई जाने वाली संपत्ति की चोरी का प्रयास।

धारा 357 – किसी व्यक्ति का सदोष परिरोध करने के प्रयत्नों में हमला या आपराधिक बल का प्रयोग।

धारा 358 – गम्भीर प्रकोपन मिलने पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग

धारा 359 – व्यपहरण

धारा 360 – भारत में से व्यपहरण।

धारा 361 – विधिपूर्ण संरक्षकता में से व्यपहरण

धारा 362 – अपहरण।

धारा 363 – व्यपहरण के लिए दण्ड

धारा 363क – भीख मांगने के प्रयोजनों के लिए अप्राप्तवय का व्यपहरण का विकलांगीकरण

धारा 364 – हत्या करने के लिए व्यपहरण या अपहरण करना।

धारा 364क – फिरौती, आदि के लिए व्यपहरण।

धारा 365 – किसी व्यक्ति का गुप्त और अनुचित रूप से सीमित / क़ैद करने के आशय से व्यपहरण या अपहरण।

धारा 366 – विवाह आदि के करने को विवश करने के लिए किसी स्त्री को व्यपहृत करना, अपहृत करना या उत्प्रेरित करना

धारा 366क – अप्राप्तवय लड़की का उपापन

धारा 366ख – विदेश से लड़की का आयात करना

धारा 367 – व्यक्ति को घोर उपहति, दासत्व, आदि का विषय बनाने के उद्देश्य से व्यपहरण या अपहरण।

धारा 368 – व्यपहृत या अपहृत व्यक्ति को गलत तरीके से छिपाना या क़ैद करना।

धारा 369 – दस वर्ष से कम आयु के शिशु के शरीर पर से चोरी करने के आशय से उसका व्यपहरण या अपहरण

धारा 370 – मानव तस्करी – दास के रूप में किसी व्यक्ति को खरीदना या बेचना।

धारा 371 – दासों का आभ्यासिक व्यवहार करना।

धारा 372 – वेश्यावॄत्ति आदि के प्रयोजन के लिए नाबालिग को बेचना।

धारा 373 – वेश्यावॄत्ति आदि के प्रयोजन के लिए नाबालिग को खरीदना।

धारा 374 – विधिविरुद्ध बलपूर्वक श्रम।

धारा 375 – बलात्संग

धारा 376 – बलात्कार के लिए दण्ड

धारा 376क – पॄथक् कर दिए जाने के दौरान किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ संभोग्र

धारा 376ख – लोक सेवक द्वारा अपनी अभिरक्षा में की किसी स्त्री के साथ संभोग

धारा 376ग – जेल, प्रतिप्रेषण गॄह आदि के अधीक्षक द्वारा संभोग

धारा 376घ – अस्पताल के प्रबन्ध या कर्मचारिवॄन्द आदि के किसी सदस्य द्वारा उस अस्पताल में किसी स्त्री के साथ संभोग

धारा 377 – प्रकॄति विरुद्ध अपराध

धारा 378 – चोरी

धारा 379 – चोरी के लिए दंड

धारा 380 – निवास-गॄह आदि में चोरी

धारा 381 – लिपिक या सेवक द्वारा स्वामी के कब्जे में संपत्ति की चोरी।

धारा 382 – चोरी करने के लिए मॄत्यु, क्षति या अवरोध कारित करने की तैयारी के पश्चात् चोरी करना।

धारा 383 – उद्दापन / जबरन वसूली

धारा 384 – ज़बरदस्ती वसूली करने के लिए दण्ड।

धारा 385 – ज़बरदस्ती वसूली के लिए किसी व्यक्ति को क्षति के भय में डालना।

धारा 386 – किसी व्यक्ति को मॄत्यु या गंभीर आघात के भय में डालकर ज़बरदस्ती वसूली करना।

धारा 387 – ज़बरदस्ती वसूली करने के लिए किसी व्यक्ति को मॄत्यु या घोर आघात के भय में डालना।

धारा 388 – मॄत्यु या आजीवन कारावास, आदि से दंडनीय अपराध का अभियोग लगाने की धमकी देकर उद्दापन

धारा 389 – जबरन वसूली करने के लिए किसी व्यक्ति को अपराध का आरोप लगाने के भय में डालना।

धारा 390 – लूट।

धारा 391 – डकैती

धारा 392 – लूट के लिए दण्ड

धारा 393 – लूट करने का प्रयत्न।

धारा 394 – लूट करने में स्वेच्छापूर्वक किसी को चोट पहुँचाना

धारा 395 – डकैती के लिए दण्ड

धारा 396 – हत्या सहित डकैती।

धारा 397 – मॄत्यु या घोर आघात कारित करने के प्रयत्न के साथ लूट या डकैती।

धारा 398 – घातक आयुध से सज्जित होकर लूट या डकैती करने का प्रयत्न।

धारा 399 – डकैती करने के लिए तैयारी करना।

धारा 400 – डाकुओं की टोली का होने के लिए दण्ड

धारा 401 – चोरों के गिरोह का होने के लिए दण्ड।

धारा 402 – डकैती करने के प्रयोजन से एकत्रित होना।

धारा 403 – सम्पत्ति का बेईमानी से गबन / दुरुपयोग।

धारा 404 – मॄत व्यक्ति की मॄत्यु के समय उसके कब्जे में सम्पत्ति का बेईमानी से गबन / दुरुपयोग।

धारा 405 – आपराधिक विश्वासघात।

धारा 406 – विश्वास का आपराधिक हनन

धारा 407 – कार्यवाहक, आदि द्वारा आपराधिक विश्वासघात।

धारा 408 – लिपिक या सेवक द्वारा विश्वास का आपराधिक हनन

धारा 409 – लोक सेवक या बैंक कर्मचारी, व्यापारी या अभिकर्ता द्वारा विश्वास का आपराधिक हनन

धारा 410 – चुराई हुई संपत्ति

धारा 411 – चुराई हुई संपत्ति को बेईमानी से प्राप्त करना

धारा 412 – ऐसी संपत्ति को बेईमानी से प्राप्त करना जो डकैती करने में चुराई गई है।

धारा 413 – चुराई हुई संपत्ति का अभ्यासतः व्यापार करना।

धारा 414 – चुराई हुई संपत्ति छिपाने में सहायता करना।

धारा 415 – छल

धारा 416 – प्रतिरूपण द्वारा छल

धारा 417 – छल के लिए दण्ड।

धारा 418 – इस ज्ञान के साथ छल करना कि उस व्यक्ति को सदोष हानि हो सकती है जिसका हित संरक्षित रखने के लिए अपराधी आबद्ध है

धारा 419 – प्रतिरूपण द्वारा छल के लिए दण्ड।

धारा 420 – छल करना और बेईमानी से बहुमूल्य वस्तु / संपत्ति देने के लिए प्रेरित करना

धारा 421 – लेनदारों में वितरण निवारित करने के लिए संपत्ति का बेईमानी से या कपटपूर्वक अपसारण या छिपाना

धारा 422 – त्रऐंण को लेनदारों के लिए उपलब्ध होने से बेईमानी से या कपटपूर्वक निवारित करना

धारा 423 – अन्तरण के ऐसे विलेख का, जिसमें प्रतिफल के संबंध में मिथ्या कथन अन्तर्विष्ट है, बेईमानी से या कपटपूर्वक निष्पादन

धारा 424 – सम्पत्ति का बेईमानी से या कपटपूर्वक अपसारण या छिपाया जाना

धारा 425 – रिष्टि / कुचेष्टा।

धारा 426 – रिष्टि के लिए दण्ड

धारा 427 – कुचेष्टा जिससे पचास रुपए का नुकसान होता है

धारा 428 – दस रुपए के मूल्य के जीवजन्तु को वध करने या उसे विकलांग करने द्वारा रिष्टि

धारा 429 – किसी मूल्य के ढोर, आदि को या पचास रुपए के मूल्य के किसी जीवजन्तु का वध करने या उसे विकलांग करने आदि द्वारा कुचेष्टा।

धारा 430 – सिंचन संकर्म को क्षति करने या जल को दोषपूर्वक मोड़ने द्वारा रिष्टि

धारा 431 – लोक सड़क, पुल, नदी या जलसरणी को क्षति पहुंचाकर रिष्टि

धारा 432 – लोक जल निकास में नुकसानप्रद जलप्लावन या बाधा कारित करने द्वारा रिष्टि

धारा 433 – किसी दीपगॄह या समुद्री-चिह्न को नष्ट करके, हटाकर या कम उपयोगी बनाकर रिष्टि

धारा 434 – लोक प्राधिकारी द्वारा लगाए गए भूमि चिह्न के नष्ट करने या हटाने आदि द्वारा रिष्टि

धारा 435 – सौ रुपए का या (कॄषि उपज की दशा में) दस रुपए का नुकसान कारित करने के आशय से अग्नि या विस्फोटक पदार्थ द्वारा कुचेष्टा।

धारा 436 – गॄह आदि को नष्ट करने के आशय से अग्नि या विस्फोटक पदार्थ द्वारा कुचेष्टा।

धारा 437 – किसी तल्लायुक्त या बीस टन बोझ वाले जलयान को नष्ट करने या असुरक्षित बनाने के आशय से कुचेष्टा।

धारा 438 – धारा 437 में वर्णित अग्नि या विस्फोटक पदार्थ द्वारा की गई कुचेष्टा के लिए दण्ड।

धारा 439 – चोरी, आदि करने के आशय से जलयान को साशय भूमि या किनारे पर चढ़ा देने के लिए दण्ड।

धारा 440 – मॄत्यु या उपहति कारित करने की तैयारी के पश्चात् की गई रिष्टि

धारा 441 – आपराधिक अतिचार।

धारा 442 – गॄह-अतिचार

धारा 443 – प्रच्छन्न गॄह-अतिचार

धारा 444 – रात्रौ प्रच्छन्न गॄह-अतिचार

धारा 445 – गॄह-भेदन।

धारा 446 – रात्रौ गॄह-भेदन

धारा 447 – आपराधिक अतिचार के लिए दण्ड।

धारा 448 – गॄह-अतिचार के लिए दण्ड।

धारा 449 – मॄत्यु से दंडनीय अपराध को रोकने के लिए गॄह-अतिचार

धारा 450 – अपजीवन कारावास से दंडनीय अपराध को करने के लिए गॄह-अतिचार

धारा 451 – कारावास से दण्डनीय अपराध को करने के लिए गॄह-अतिचार।

धारा 452 – बिना अनुमति घर में घुसना, चोट पहुंचाने के लिए हमले की तैयारी, हमला या गलत तरीके से दबाव बनाना

धारा 453 – प्रच्छन्न गॄह-अतिचार या गॄह-भेदन के लिए दंड

धारा 454 – कारावास से दण्डनीय अपराध करने के लिए छिप कर गॄह-अतिचार या गॄह-भेदन करना।

धारा 455 – उपहति, हमले या सदोष अवरोध की तैयारी के पश्चात् प्रच्छन्न गॄह-अतिचार या गॄह-भेदन

धारा 456 – रात में छिप कर गॄह-अतिचार या गॄह-भेदन के लिए दण्ड।

धारा 457 – कारावास से दण्डनीय अपराध करने के लिए रात में छिप कर गॄह-अतिचार या गॄह-भेदन करना।

धारा 458 – क्षति, हमला या सदोष अवरोध की तैयारी के करके रात में गॄह-अतिचार।

धारा 459 – प्रच्छन्न गॄह-अतिचार या गॄह-भेदन करते समय घोर उपहति कारित हो

धारा 460 – रात्रौ प्रच्छन्न गॄह-अतिचार या रात्रौ गॄह-भेदन में संयुक्ततः सम्पॄक्त समस्त व्यक्ति दंडनीय हैं, जबकि उनमें से एक द्वारा मॄत्यु या घोर उपहति कारित हो

धारा 461 – ऐसे पात्र को, जिसमें संपत्ति है, बेईमानी से तोड़कर खोलना

धारा 462 – उसी अपराध के लिए दंड, जब कि वह ऐसे व्यक्ति द्वारा किया गया है जिसे अभिरक्षा न्यस्त की गई है

धारा 463 – कूटरचना

धारा 464 – मिथ्या दस्तावेज रचना

धारा 465 – कूटरचना के लिए दण्ड।

धारा 466 – न्यायालय के अभिलेख की या लोक रजिस्टर आदि की कूटरचना

धारा 467 – मूल्यवान प्रतिभूति, वसीयत, इत्यादि की कूटरचना

धारा 468 – छल के प्रयोजन से कूटरचना

धारा 469 – ख्याति को अपहानि पहुंचाने के आशय से कूटरचन्न

धारा 470 – कूटरचित 2[दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेखट

धारा 471 – कूटरचित दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख का असली के रूप में उपयोग में लाना

धारा 472 – धारा 467 के अधीन दण्डनीय कूटरचना करने के आशय से कूटकॄत मुद्रा, आदि का बनाना या कब्जे में रखना

धारा 473 – अन्यथा दण्डनीय कूटरचना करने के आशय से कूटकॄत मुद्रा, आदि का बनाना या कब्जे में रखना

धारा 474 – धारा 466 या 467 में वर्णित दस्तावेज को, उसे कूटरचित जानते हुए और उसे असली के रूप में उपयोग में लाने का आशय रखते हुए, कब्जे में रखना

धारा 475 – धारा 467 में वर्णित दस्तावेजों के अधिप्रमाणीकरण के लिए उपयोग में लाई जाने वाली अभिलक्षणा या चिह्न की कूटकॄति बनाना या कूटकॄत चिह्नयुक्त पदार्थ को कब्जे में रखना

धारा 476 – धारा 467 में वर्णित दस्तावेजों से भिन्न दस्तावेजों के अधिप्रमाणीकरण के लिए उपयोग में लाई जाने वाली अभिलक्षणा या चिह्न की कूटकॄति बनाना या कूटकॄत चिह्नयुक्त पदार्थ को कब्जे में रखना

धारा 477 – विल, दत्तकग्रहण प्राधिकार-पत्र या मूल्यवान प्रतिभूति को कपटपूर्वक रदद््, नष्ट, आदि करना

धारा 477क – लेखा का मिथ्याकरण

धारा 478 – व्यापार चिह्न

धारा 479 – सम्पत्ति-चिह्न

धारा 480 – मिथ्या व्यापार चिह्न का प्रयोग किया जाना

धारा 481 – मिथ्या सम्पत्ति-चिह्न को उपयोग में लाना

धारा 482 – मिथ्या सम्पत्ति-चिह्न को उपयोग करने के लिए दण्ड।

धारा 483 – अन्य व्यक्ति द्वारा उपयोग में लाए गए सम्पत्ति चिह्न का कूटकरण

धारा 484 – लोक सेवक द्वारा उपयोग में लाए गए चिह्न का कूटकरण

धारा 485 – सम्पत्ति-चिह्न के कूटकरण के लिए कोई उपकरण बनाना या उस पर कब्जा

धारा 486 – कूटकॄत सम्पत्ति-चिह्न से चिन्हित माल का विक्रय

धारा 487 – किसी ऐसे पात्र के ऊपर मिथ्या चिह्न बनाना जिसमें माल रखा है

धारा 488 – किसी ऐसे मिथ्या चिह्न को उपयोग में लाने के लिए दण्ड

धारा 489 – क्षति कारित करने के आशय से सम्पत्ति-चिह्न को बिगाड़ना

धारा 489क – करेन्सी नोटों या बैंक नोटों का कूटकरण

धारा 489ख – कूटरचित या कूटकॄत करेंसी नोटों या बैंक नोटों को असली के रूप में उपयोग में लाना

धारा 489ग – कूटरचित या कूटकॄत करेन्सी नोटों या बैंक नोटों को कब्जे में रखना

धारा 489घ – करेन्सी नोटों या बैंक नोटों की कूटरचना या कूटकरण के लिए उपकरण या सामग्री बनाना या कब्जे में रखना

धारा 489ङ – करेन्सी नोटों या बैंक नोटों से सदृश्य रखने वाली दस्तावेजों की रचना या उपयोग

धारा 490 – समुद्र यात्रा या यात्रा के दौरान सेवा भंग

धारा 491 – असहाय व्यक्ति की परिचर्या करने की और उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति करने की संविदा का भंग

धारा 492 – दूर वाले स्थान पर सेवा करने का संविदा भंग जहां सेवक को मालिक के खर्चे पर ले जाया जाता है

धारा 493 – विधिपूर्ण विवाह का धोखे से विश्वास उत्प्रेरित करने वाले पुरुष द्वारा कारित सहवास।

धारा 494 – पति या पत्नी के जीवनकाल में पुनः विवाह करना

धारा 495 – वही अपराध पूर्ववर्ती विवाह को उस व्यक्ति से छिपाकर जिसके साथ आगामी विवाह किया जाता है।

धारा 496 – विधिपूर्ण विवाह के बिना कपटपूर्वक विवाह कर्म पूरा करना।

धारा 497 – व्यभिचार

धारा 498 – विवाहित स्त्री को आपराधिक आशय से फुसलाकर ले जाना, या निरुद्ध रखना

धारा 498A – किसी स्त्री के पति या पति के नातेदार द्वारा उसके प्रति क्रूरता करना

धारा 499 – मानहानि

धारा 500 – मानहानि के लिए दण्ड।

धारा 501 – मानहानिकारक जानी हुई बात को मुद्रित या उत्कीर्ण करना।

धारा 502 – मानहानिकारक विषय रखने वाले मुद्रित या उत्कीर्ण सामग्री का बेचना।

धारा 503 – आपराधिक अभित्रास।

धारा 504 – शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान करना

धारा 505 – लोक रिष्टिकारक वक्तव्य।

धारा 506 – धमकाना

धारा 507 – अनाम संसूचना द्वारा आपराधिक अभित्रास।

धारा 508 – व्यक्ति को यह विश्वास करने के लिए उत्प्रेरित करके कि वह दैवी अप्रसाद का भाजन होगा कराया गया कार्य

धारा 509 – शब्द, अंगविक्षेप या कार्य जो किसी स्त्री की लज्जा का अनादर करने के लिए आशयित है

धारा 510 – शराबी व्यक्ति द्वारा लोक स्थान में दुराचार।

धारा 511 – आजीवन कारावास या अन्य कारावास से दण्डनीय अपराधों को करने का प्रयत्न करने के लिए दण्ड

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